तेजाजी महाराज का इतिहास || तेजाजी कौन थे
इस ब्लॉक के माध्यम से तेजाजी कौन थे,तेजाजी महाराज का इतिहास व लीलण की संपूर्ण जानकारी दी जा रही है।
तेजाजी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
तेजाजी महाराज का जन्म माघ शुक्ल चतुर्दशी को खरनाल (नागौर) में 1074 ईस्वी (विक्रम संवत 1130) में हुआ था। इनके पिता का नाम ताहड़ जी और माता का नाम रामकुंवरी था।![]() |
तेजाजी महाराज का इतिहास || तेजाजी कौन थे |
तेजाजी का परिवार और वंश
तेजाजी जाट परिवार से हैं। तेजाजी धोलिया/धौल्या जाट परिवार से आते हैं। तेजाजी की बहन का नाम राजल था। उनके दादाजी बक्सा जी गांव की मुखिया थे।नाग-देवता और तेजाजी की कथा
प्राचीन परंपराओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार यह अपने ससुराल पनेर (परबतसर) गए थे। वहीं पर उनकी सास ने उनको उलाहना दे दिया । जिसके कारण इनको ठेस पहुंची और वह वहां से निकल गए रास्ते में लाछा गुजरी के घर पर उनकी मुलाकात उनकी पत्नी पेमल से हुई। तभी उनको पता चला कि लाछा गुजरी की गायों को मेर के मीणा अपने साथ लेकर चले गए। उन्होंने लाछा गुजरी को वचन दिया कि मैं आपकी गायें लेकर आऊंगा और वहीं से तेजाजी महाराज मेर के मीणाओं से लाछा गुजरी की गाय छुड़ाने के लिए रवाना हो गए। रास्ते में उनको नागों का जोड़ा आग में जलते हुए दिखाई दिया तब उन्होंने दया दिखाते हुए सांप को आज से बाहर निकाल दिया। तब नाग देवता उनसे रूष्ट हो गए और उनसे बोला कि तुम्हें मरना होगा। तब तेजाजी महाराज ने कहा कि अभी मुझे जाने दो किसी का वचन पूरा करना है। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं वापस जरूर आऊंगा। तब नाग देवता ने उनको जाने दिया और तेजाजी महाराज ने मेर के मीणाओं से युद्ध करके लाछा गुजरी की गायें छुड़वायी और तेजाजी महाराज वापस नाग देवता के पास आ गए। लेकिन वह पूरी तरह से घायल अवस्था में थे। नाग देवता ने उनसे कहा कि मैं तुम्हें कहां डंसु तब तेजाजी महाराज ने कहा कि मेरी जीभ पर डसे। इस तरह तेजाजी महाराज ने अपना वचन पूरा किया तभी से तेजाजी महाराज को "सांपों के देवता" और "गौरक्षक देवता" कहा जाता है।तेजाजी की वीरता और लोककथाएँ
लोक देवता तेजाजी एक वीर पुरूष थे। उन्होंने लाछा गुजरी की गायों को मेर के मीणाओं से युद्ध करके छुड़वाया और अपना वचन पूरा किया।राजस्थान में तेजाजी की पूजा और मान्यताएँ
राजस्थान में तेजाजी की पूजा बड़े सम्मान के साथ की जाती है। वैसे तेजा तेजाजी की पूजा पूरे राजस्थान में की जाती है परंतु तेजाजी की पूजा मुख्यतः राजस्थान में चार जगह पर की जाती है :- "सुरसुरा, खड़नाल, सेंदरिया और ब्यावर।"तेजाजी के प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल
तेजाजी महाराज का मुख्य मंदिर सुरसुरा व खड़नाल में स्थित है, जो कि जाट समाज और राजस्थान के सभी लोगों के लिए एक तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता है। तेजाजी के मंदिर को "थान या देवरा" कहा जाता है। तेजाजी के अन्य मंदिर परबतसर, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश आदि स्थान पर भी है।
तेजाजी जयंती और मेला
तेजाजी की जयंती "भाद्रपद शुक्ल दशमी" को हर साल मनाई जाती है, जो भक्तों द्वारा बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। सुरसुरा में तेजाजी का मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी को बड़े ही धूमधाम से लगता है और राजस्थान में अन्य जगहों पर भी लगता है।लोक देवता तेजाजी की मृत्यु
तेजाजी महाराज की मृत्यु सर्पदंश के कारण भाद्रपद शुक्ल दशमी संवत 1160 में सुरसुरा (किशनगढ़) नामक स्थान पर हुई।लोकगीतों और लोककथाओं में तेजाजी
लोक कथाओं और लोकगीतों में तेजाजी को "तेजा बाबा" के नाम से जाना जाता है। वर्तमान समय में तेजाजी महाराज के लोकगीत तो बहुत ही अत्यधिक प्रचलित है। लीलण सिंणगारी,तेजो बाबो आव लो, ढोल नगाड़ा बाजे, तेजाजी चाल्या सुरसुरा, फुलड़ा ऊपर बैठ्यो कालो नाग जैसे कई गीत अत्यधिक प्रचलित है।तेजाजी की शिक्षाएँ और संदेश
तेजाजी नारी का सम्मान करते थे और गायों को माता मानते थे, साथ में सर्व धर्म समाज की बात करते थे। वे जाति पांति भेदभाव को नहीं मानते थे। तेजाजी महाराज सत्य, वीरता और जन सेवा के प्रतिक थे।घोड़े "लीलण" की कथा
तेजाजी के पिताजी ताहड़ जी उस समय गांव में भूस्वामी की हैसियत रखते थे। इस समय में वहां से एक लखी बंजारा व्यापार के लिए सिंध प्रांत जाता था। उसके पास एक सफेद रंग की अद्भुत घोड़ी थी। जिसने एक बछड़े को जन्म दिया जन्म के उपरांत ही घोड़ी स्वर्ग सिधार गई और उसकी मादा बछड़ी रह गई । लखी बंजारे ने वह मादा घोड़ी ताहड़ जी को सौंप दी। तेजाजी भी उस घोड़ी से बहुत प्रेम करते थे और उसे "लीलण" नाम दिया गया। जिसे तेजाजी प्रेम से "सिणगारी" बुलाते थे। तेजाजी महाराज का इतिहास और उसमें लीलण का जिक्र ना हो ऐसा कभी नहीं हो सकता।नागदेवता के वचन निभाने की कहानी
लाछा गुजरी की गाय मेर के मीणा से छुड़वाने के लिए तेजाजी जा रहे थे तभी रास्ते में नाग देवता को अग्नि में देखकर उनको दया आई और उन्होंने नाग को बाहर निकाल दिया, तभी नाग देवता रुष्ट हो गए और उनको डसने के लिए कहा। तेजाजी ने कहा कि मैं लाछा गुजरी की गायें छुड़ा लाता हूं । उसके बाद आप मुझे डस लेना फिर तेजाजी ने ऐसा ही किया और घायल अवस्था में नाग देवता के पास आए और उनको अपनी जीभ पर डसवा लिया और अपना वचन पूरा किया। तेजाजी महाराज का इतिहास में नाग देवता के वचन निभाने का जिक्र बहुत ही अहम है।- तेजाजी की जन्म तिथि और स्थान
तेजाजी का जन्म 1074 ईस्वी में खड़नाल,नागौर में हुआ।
- तेजाजी को "नागों के देवता" क्यों कहा जाता है?
तेजाजी ने अपनी वचनबद्धता के कारण नाग देवता को युद्ध में घायल होने के बाद भी अपनी जीभ पर डसने दिया और अपना वचन पूरा किया। इसी कारण तेजाजी को "नागों के देवता" कहा जाता है।
- ग्रामीण समाज में तेजाजी की आस्था
ग्रामीण समाज में उनकी आस्था इतनी है कि प्रत्येक गांव में गांव के बीचो-बीच तेजा चौक बनाया जाता है। गांव में तेजाजी की इतनी आस्था है कि सर्प डस जाने पर वह तेजाजी की तांती बांधते हैं और झाड़ा लगवाते हैं। तेजाजी महाराज का इतिहास में बड़ा ही अमूल्य योगदान है।- आज के समय में तेजाजी की प्रासंगिकता
वर्तमान समय में तेजाजी की प्रसिद्धि न केवल राजस्थान तक सीमित है बल्कि पूरे भारतवर्ष में तेजाजी को पूजा जाता है। गांव-गांव में तेजाजी का मेला लगता है। तेजाजी महाराज का इतिहास हर किसी को पता है।ये भी पढ़ें :-
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